शम्मा
शोर तारी है , ज़ब्रे पे ये सोज़ -ए सब्र क्यों है
हम तो घिरे या लड़े अब यहाँ के तूफानों से
अभी तक होश है, जैसे भी है हम दीवानो में
क़फ़स मैं हो के रहे या उडे हम आसमानों में
शम्मा जो जल रही कहीं यहाँ पे वीरानो में
नूर ले आई कही से तू भी इन आसमानों से
हम तो मौत को भी जी जाते है फिर "अना"
क्यों रुके हम यू ही कही बहते आबसारो पे
आराधना