बुलबुले चहकती थी इसी बाग़ में
गुलसिताँ जब महकने ही लगा
रूप, गंघ,रस के सुखी इस संसार में
क्यू भागती दौड़ती थी ये तितलियाँ
प्रेम , प्रीत और नेह से थीजब पल्वित
कुसुमित सदा नव हार से सुरभित सभी
देखती है स्वप्न सुन्दर अब भी देखो कहीं
@कॉपी राइट आराधना
मेरी कथाओं के संसार में आप का स्वागत है। लेखिका द्वारा स्वरचित कविताएँ है इन के साथ छेड़खानी दंडनीय अपराध माना जाएगा । This is a original work of author copy of work will be punishable offense.
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