जंग लगी बेड़ियों का फिर ये हार
क्यों
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क्षुब्ध संचित जीवन पर अब ये प्रहार
क्यों
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भ्रमित हो चुके गान सारे नव प्रयाण
क्यों
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भोर कि इस लालिमा पर अश्रु धार
क्यों
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रंग विहीन जीवन पर अब ये श्रृंगार
क्यों
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नीड़ का तेरे मेरेअब फिर निर्माण
क्यों
आराधना
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