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मेरी दुनियाँ का नाता,



मेरी दुनियाँ का ये नाता,
हर रोज़ निभाया जाता है
रोज़ मिटा के ये तकदीरे  ,
रोज़ बना  दी जाती है। 

  
हर रोज़ सुबह लगते मेले
हर शाम तमाशे बंद हुये  
हर बार ही परिभाषा  बदली 
हर रिश्ते की ,हर नाते की। 

हर रोज़ यहाँ बाजार सजे 
हर रोज़ ही आई दिवाली 
ये जिस्म ढले ,ये रूह बनी। 
ये सॉस रही ,चलती रूकती।

रुका न  कोई कार्ये व्यापार यहॉ 
मेरे नातो का,मेरे इन रिश्तो का
कोई मोल यहॉ फिर कब  रहता है 
यहाँ रोज़ ही बनते है ये जब  रिश्ते। 

 तेरी दुनियाँ में जब हम  आये है
 देखे तेरा अब तेरा भी ईमान यहाँ 
 जो गए मुसाफिर  इस जग से  ही 
अब उनका फिर शेष निशान  कहाँ। 
आराधना 

प्रेरणात्मक आभार  स्वर्गीय पंडित त्रिवेणी राय।  






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