सभ्यता का ये कैसा हुआ विकास है
नर पशुता से कर रहा क्यों संहार है।
सुनता नहीं कोई जब कोई पुकार है
घायल होता तब यही हर इंसान है
भूख से बेहाल यहाँ खुद किसान है
भूमि बंज़र,ज़र्ज़र और हुई बेहाल है
रोटी कि जगह भूख पकती क्यों है
चूल्हें की आग ये अब दिल में क्यू है
आराधना
Comments