बेज़ुबानी भी एक चलन है बस जीने का
अपनी ही सोच में अपने आप चलने का
धूप थी सख्त पर कोई शज़र ना मिला
ज़िन्दगी में कोई भी हमसफर ना मिला
हमने नेकियों पर भी बदी का सिला देखा
ज़ुल्म सह-सह कर उन्हें बस हँसते देखा
माना कल फिर से ये मंज़र बदल जायेगा
कोई ना कोई बादल तो जरूर बरस जायेगा
आराधना
प्रीत कि अजब दास्ताँ क्या कर देखी
घनीभुत पीड़ा में दूसरे कि खशी देखी
हवाओं का रुख कब जाना किसी ने
हर घड़ी बस तुमको आवाज़ दे दी
Comments