एक मज़बूरी कितनो को रुला देती है
कभी सवाल कभी जवाब सुना देती है
रुठते वक़्त में अपना सा बना देती है
कांपते होठो से नाम तेरा ही लेती है
माना गम से दो चार करा भी देती है
कितने इल्ज़ाम दिल में ये उठा देती है
एक बे -नूरी पे कालिया खिल जाती है
ये बात दिवार दर दिवार हुई क्यू जाती है
दिल के हालात का रोना क्या रो जाती है
इस जहां को क्यू तू दीवाना बना जाती है
कभी सवाल कभी जवाब सुना देती है
रुठते वक़्त में अपना सा बना देती है
कांपते होठो से नाम तेरा ही लेती है
माना गम से दो चार करा भी देती है
कितने इल्ज़ाम दिल में ये उठा देती है
एक बे -नूरी पे कालिया खिल जाती है
ये बात दिवार दर दिवार हुई क्यू जाती है
दिल के हालात का रोना क्या रो जाती है
इस जहां को क्यू तू दीवाना बना जाती है
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