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ढूंढते रहे


ढूंढते रहे

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तेरी चाहत लिए ना जाने कहाँ यू घूमते  रहे
मंज़िल कि तलाश में जाने क्या यू ढूंढ़ते रहे

वादा नहीं तुझसे फिर सनम तुझे ढूंढते रहे
बोझ कांधे उठा कर सदियों यू ही घूमते रहे

रात दर्द की खामोशियों में तुझे क्यू ढूंढते रहे
ख्वाब था फिर भी सिरहाने तुझे यू ही ढूंढते रहे

किस कशमकश में थे क्यों ये बात पूछते ही रहे
तेरे घर का पता किसी और से हम क्यू पूछते रहे

तेरे बगैर ज़िन्दगी काटी और तुझे  भूलते ही रहे
इसी सोच में जाने किस किस को खुदा बोलते रहे

आराधना राय


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गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"
आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना