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बता जाती है

बता जाती है
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बात दिल को छू कर यू  चली जाती है
ज़िंदगी अपनी  कीमत ही बता जाती है
दुनियाँ में  हर शए ही बिकने  जाती है
गर सही कीमत कहीं उसे मिलजाती है

दफ़न , कफ़न , भी जो लोग नहीं पाते है
उनके हिस्सें में बस सिक्के नहींआते है
अस्मत से  किस्मत तक खरीद जाते है
खनकते सिक्कों को खुदा भी कह जाते है

दिल कि उम्मीद पर जीवन जो बिताते है
उनकी क़ीमत तो खुदा भी नहीं लगते है
चाँद तारे भी सामने  मंद से  पड़ जाते है
वो  ही सूरज बन दुनियाँ को  चमकाते है 
आराधना राय 


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गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"

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