हथेली पर पड़ी हर लकीर बदल जाती है
सात -जन्मों कि हर बात बदल जाती है
कब ये आंखों के वो ख़्वाब बदल जाती है
ज़िन्दगी तू रोज़ हमें यू ही तड़पा जाती है
रोज़ नींद में वो बहलाने मुझे आ जाती है
कभी हँसती है कभी रुला कर वो जाती है
अपने दिल के दर्द को वो छिपा जाती है
आँख कि किरकिरी "अरु " बता जाती है
आराधना राय
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