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सवालात

 एहतमाद के काबिल ना थे उनका ख्याल किए
 दिलों में नश्तर चुभा के सौ  सवालात किए

तेरी पनाह में झुक कर सज़दे  हज़ार किए
उससे जीने के वादे  हमने हज़ार किए

वफ़ा कि बातें  हमारी ज़ानिब से  बार-बार किए
क़त्ल कि रात हर लम्हा हमारा इंतज़ार किए

उसी के नाम का सदका हज़ार बार किए
उसी को खुदा मान कर सौ- सौ काम किए

अज़ीम ग़ैरत  रही  जिन्होंने  सवालात किए
अज़ीब बात है "अरु " तुझसे हर सवाल किए  
आराधना राय


copyright : Rai Aradhana ©

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गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"
आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना