अनकही
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अनकही बात होठो में दबा कर जिए
ज़िंदगी बोल कब तलक मर कर जिए
अपने ज़हन में उजाले लिए हम यू जिए
उम्र के हर मोड़ पर आफ़ताब से ही जिए
चलना है काम अगर शिद्दत से हम जिए
ग़र्क़ हो कर भी "अरु "यू मेहताब से जिए
आराधना राय
Rai Aradhana ©
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