साभार गुगल
गुजरता है
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उनकी गलियों से अब गुजरता है
रूह की वादियों से जब गुजरता है
सोंधी मिट्टी की कसक है यादों में
मन बावरा प्यार में अब बहकता है
तेरा अक्स बादलों में अब दिखता है
रूप का सागर बन जब छलकता है
वादा उमर भर का कोई नहीं करता है
हादसों से हर कोई कब यहाँ उभरता है
छोड़ दिया सारा हमने रिश्ता-ए जहान
दर्द का काफ़िला जब कोई चलता है
उनकी आँखों से नूर बन कर बहा
मन का उमंगो भरा जब संवरता है
मेरी हाथों में लिख कर इबारत सी
"अरु" कोई अश्क बन पिधलता है
आराधना राय "अरु"
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