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पूजा करने वालों को

कविता
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कब तक साहित्य की पूजा करने वालों को
फुटपाथ मिलेगा
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जीते जी ज़लने वालों को केवल
भूखा पेट मिलेगा
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धरा की बेटी को कब तक सामाजिक
अपमान मिलेगा
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नव- सृज़न करने वालों को केवल
क्या बाज़ार मिलेगा
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सूर्य परिक्रमा करती धरती को कभी
व्योम का साथ मिलेगा
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नारी- का अपमान कर चुके पुरुषों को ईश्वर सम
पूज कर सम्मान मिलेगा
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मुरझाए फूलों को क्या इस जीवन में
जीने का अधिकार मिलेगा
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पाखंड करते लोगों को केवल अब
भ्रमित संसार मिलेगा
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हाथ कटोरा भीख मांगती इस दुनियाँ को
क्या ईश्वर तेरा साथ मिलेगा
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वर्जनाओ पर टिकी इस दुनियाँ को
केवल हाहाकार मिलेगा
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मस्तक पर चन्दन रख मिथ्या कहने वालों को
केवल बाज़ार मिलेगा
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"अरु" सत्य नहीं बिकता जीवन के रण में चलता है
साथ ईश्वर बन के,अभय- सा जीवन वरदान मिलेगा
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आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना