Skip to main content

तमाशा हो गया

सौदा खुद बाज़ार में ये कैसा हो गया
 तमाशाई खुद यहाँ पर तमाशा हो गया

 कौन सा दिन कहर का नाज़िल हो गया
 लोगों की दुश्वारी से कोई परेशां हो गया

 दिल के जाने पर हादसा साथ हो गया
 साहिल पे कश्तियाँ डुबों शर्मिंदा हो गया

बयाँ कर सका ना कोई तकदीर हो गया
जिंदगी तेरे हाथों कोई निराश हो गया

सौ- मुश्किलें पड़ी दिल तार- तार हो गया
बस्ती के लोगों के लिए  कहकशां सा हो गया

अहसान फरामोश ही जब कारवां हो गया
फ़कीरी में रहना भी "अरु" इक नशा हो गया

© आराधना राय "अरु"

Comments

Popular posts from this blog

आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना