ग़ज़ल
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बे वजह नाम तो मेरा न पुकारा होगा
आपके प्यार का ये एक इशारा होगा
जख्म को मेरे इक तेरा सहारा होगा
अभी भरा है कभी तो ये हरा होगा
दर्द सीने मे उसके भी उठता होगा
चाँद तन्हा है इक दिन हमारा होगा
कच्ची मिट्टी के घर मे गुजारा होगा
शहर का तुनक मिज़ाज़ ना प्यारा होगा
.
इन अंधेरों का कोई तो उजाला होगा
दर्द सीने का भला किसको गवारा होगा
माँ का दिल भी दर्द से तड़पा होगा अरु ,
चोट खा कर जब अश्क उमड़ता होगा
आराधना राय "अरु"
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