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कुरुक्षेत्र





ईष्या द्वेष के मारों का हाल ना पूछे
स्वार्थ हुआ मजहब कुछ हाल ना पूछे
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स्वार्थ से हुए अंधे धृतराष्ट्र दुःशासन यहाँ सभी
कर्म बन गया किसका कुरुक्षेत्र का रणक्षेत्र तभी
आस्था के प्रश्न पर सब यहाँ मारीच से निकले
ईश्वर जिनके लिए छलिया कपटी धूर्त निकले
मंदिर , मस्जिद, गिरजा बना कर पूजते है सभी
वक़्त आने पूजा का घर जला जाता है हर कोई
आज पूज लो भगवान जितने बना बैठे हर कही
समय कि धारा में वो भी बह जायेगे कहीं ना कहीं
बिजलियों के बीच रहता है जैसे हर यहाँ हर कोई
गरीब का साया बिना बात छीन लेता है हर कोई
ईशु, मीरा, सुकरात ज्ञानेश्वर बिष पी जी गए सभी
मसीहा आ कर दुनियाँ में रो कर क्या गए यहोँ सभी
भगवान को परख डालोगे परख नालियों में तूम सभी
स्वार्थ के क्या कहने स्वयं को विधाता बुलाते हो सभी
आराधना राय "अरु"

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आज़ाद नज़्म पेड़ कब मेरा साया बन सके धुप के धर मुझे  विरासत  में मिले आफताब पाने की चाहत में नजाने  कितने ज़ख्म मिले एक तू गर नहीं  होता फर्क किस्मत में भला क्या होता मेरे हिस्से में आँसू थे लिखे तेरे हिस्से में मेहताब मिले एक लिबास डाल के बरसो चले एक दर्द ओढ़ ना जाने कैसे जिए ना दिल होता तो दर्द भी ना होता एक कज़ा लेके हम चलते चले ----- आराधना  राय कज़ा ---- सज़ा -- आफताब -- सूरज ---मेहताब --- चाँद

गीत---- नज़्म

आपकी बातों में जीने का सहारा है राब्ता बातों का हुआ अब दुबारा है अश्क ढले नगमों में किसे गवारा है चाँद तिरे मिलने से रूप को संवारा है आईना बता खुद से कौन सा इशारा है मस्त बहे झोकों में हसीन सा नजारा है अश्कबार आँखों में कौंध रहा शरारा है सिमटी हुई रातों में किसने अब पुकारा है आराधना राय "अरु"

गीत हूँ।

न मैं मनमीत न जग की रीत ना तेरी प्रीत बता फिर कौन हूँ घटा घनघोर मचाये शोर  मन का मोर नाचे सब ओर बता फिर कौन हूँ मैं धरणी धीर भूमि का गीत अम्बर की मीत अदिति का मान  हूँ आराधना