मर गया कोई रोना भी नही आया उसको
दुनियाँ ने कितना अकेला बनाया मुझको
रौंद कर पूछते है फूल नहीं भाया उसको
रौशनी के लिए अँधेरा तूने बनाया मुझको
खुद जी कर मौत का कफ़न पहनाया मुझको
अपने निवालों के लिए भूखा मरवाया मुझको
बिक गए दर्द मेरे गीत बन बहलाया किसको
आज नहीं कल कौनमार कर पछताया किसको
इंसानियत मर गई ज़िक्र तक ना भाया उसको
आराधना राय "अरु"
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