जो नहीं मिला
उस कि तलाश में सब है
ताश के घर में सब
के सब बंद है
पुरजे- पुरजे हो कर
अभी बिखरा है
जोड़ -जोड़ कर पैबंद
सा सीते है सभी
मर कर भी ख़ुश ही
इस दुनियाँ मैं
कागजों का व्यापार
ढूंढते है सभी
सोचते है पैसो से खरीद
ली दुनियाँ
इश्क़ भी खरीदते है
वही
ना जाने किसकी
मजबूरियों को
प्रेम, इश्क, वफ़ा का
नाम दिया
उसे खरीद कर ना जाने किस
दिल के साथ खिलवाड़ किया
प्रेम , ढाई शब्दों का ही सही
लेकिन करोड़ों में नहीं बिकता अभी
क्योकि इस दुनियाँ मैं
राधा-कृष्ण सा प्यार नहीं मिलता कभी
आराधना राय "अरु"
जो नहीं मिला वो एतबार ढूंढते है
अपना खोया हुआ विश्वास ढूंढते है
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