नज्म
माना जीने
कि उम्मीद है कम
फिर भी उम्मीद है मेरे जीने की
फिर भी उम्मीद है मेरे जीने की
सुलगती रहती है आवे की तरह
सोच है मेरी या आग सीने की.
सोच है मेरी या आग सीने की.
रोज़ होती है आंखे अश्कबार
सीख ली हमने अदा जीने की
धडकती रहती है सीने
में कही
लो लगा दी हमने आग सीने की
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