बात
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बात है राज़ क्या यू बताये अपना
ये हकीकत है वो मानते है सपना कौन कैसे जाने कब जी ही जाता है
कौन मुक़दर को यू ही आज़माता है मुझे साहिल कभी यू मिले ही नहीं
समुंदर मैं डूबी यू ही चली जाती हूँ हम जिए या ना जीये तेरे अरमान में
ज़िन्दगी अपनी रौ में बही ही जाती है कल का सामान बांध ले तू बस अभी
आज कि रुखसती "अरु" हुई जाती है
आराधना राय
ये हकीकत है वो मानते है सपना कौन कैसे जाने कब जी ही जाता है
कौन मुक़दर को यू ही आज़माता है मुझे साहिल कभी यू मिले ही नहीं
समुंदर मैं डूबी यू ही चली जाती हूँ हम जिए या ना जीये तेरे अरमान में
ज़िन्दगी अपनी रौ में बही ही जाती है कल का सामान बांध ले तू बस अभी
आज कि रुखसती "अरु" हुई जाती है
आराधना राय